Thursday, September 18, 2008

बदलता सबकुछ था...

बदलता आसमान था...
खुली ख्वाबो की चादर,
पंछियों की पंक्ति में,
सूरज के किरणों ने रास्ता दिखाया,
बादलों ने राह बना दी,
हवा ने बिखेर दी सुगंध,
क्या समा था यह सुहाना...
बदलता आसमान था.

बदलती ज़िन्दगी थी...
चाहतों का भरमार था,
किस मोड़ पे रुक जाए,
कदमो को अपने आहात का ना एहसास था,
बस मोहब्बत का तजुर्बा था,
स्याही ने कागज़ पर बस आशियाना बनाया था,
क्या खिलखिलाती थी वोह रवानी...
बदलती ज़िन्दगी थी.

बदलती दुनिया थी...
हर किसी को अपनी ही खोज,
नज़र ना आता डूबता सूरज,
अनदेखा करते दुखो की साजिश,
इंसानियत को ढके बस मंजिल को बढ़ना,
और ऊँचा हैं जाना, और ऊँचा हैं जाना,
क्या दिखे ना अपनी मात दर्दनाक?
बदलती दुनिया थी.

बदलता आसमान था...
बदलती ज़िन्दगी थी...
बदलती दुनिया थी...
बदलाव में ठहराव की अपेक्षा,
बदलाव में कशमकश की सच्चाई,
बदलाव में गुज़रता पल,
बदलाव में ढलती साँसे,
बदलता सबकुछ था...

1 comment:

Unknown said...

bahut khub Madhurima Ji
Parivartan sansar ka niyam hai aur evolution ka ek kaaran

shri ram

I think, I feel, I want, I believe

  I think, I feel, I want, I believe                               Sipping 'Unknown Pleasure' and often wondering, what do I really ...