Friday, September 23, 2011

मन- मल्हार

ना जाने क्या सोचे यह मन
उलझी सोच और सुलझा जीवन
पतंग की डोर हाथ में थामे
आसमान में नयी बुलंदियां छूने

बादल के बीच लुकाछुपी का खेल
सूरज की किरणों में नाचता शब्द - रेल
वाद विवाद में छुपा सन्नाटा
शांत माहोल में सुलगती भावनाए।

ना जाने क्या जाने यह मन
क्या हैं हर्ज़ अगर कुछ ना जाने
ना कोई डर अगर कुछ ना समझे
ना कोई सीमा अगर कुछ ना सोचे
मन- मल्हार अपना गीत पिरोये।

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