Saturday, September 22, 2007

सवाल

खामोशी छाई हुई थी ,
तनहाई का सहारा था ...
अपने ख्वाबों को समेटने का ,
मेरे पास एही एक मौका था।

ना जाने क्यों ऐसा होता हैं,
खामोशी में दिमाग हिचकोले लेटा हैं;
तनहाई कि गहराई में यादें दुबकी लेती हैं.

क्या किया ? क्या पाया ?
हर सवाल का जवाब नहीं होता।
जो सच्चाई पिरोये जिन्दगी ने ,

उस गुत्थी को बस सुलझाना हैं।


शब्दो के भावंदर में कही खो ना जाऊ मैं...

बहुत कुछ कहते हुए भी...कुछ ना कह पाऊँ मैं;

खामोशी छाई हुई थी,

तनहाई का सहारा था...

2 comments:

dinesh said...

nice poem

Novice said...

kuch baatien ankahee rehti hain..par unsuni nahi!
maine inhe suna hai..dur hi sahi..bina mile hi sahi..par haan maine suna hai!

Rima, you are deeply loved

                                                  Rima at Infinitea, Bengaluru Dearest Rima, I wish I wasn’t writing this letter to you. B...