Tuesday, April 21, 2009

बन रही किसी गली, कहानी मनचली थी....

बिजली कड़क रही थी,

नए मौसम की आन में.

बादल गरज रहे थे,

नए बूंदों की शान में।


बारिश की वोह हसीं रात थी,

रिमझिम बूंदों में बावला संगीत था,

भीगी मिटटी में थिरकती जान थी,

बन रही किसी गली, कहानी मनचली थी।


बारिश की पहली बूँदें देखकर,

वह दोनों भागे रस्ते पे, हर फिक्र दूर छोड़कर.

उन पलों में जीना था,

पहली बारिश का लुफ्त उठाना था।


शादी के पहले साल की पहली पहली बरसात थी,

क्यूँ ना बहकते कदम,

सुहाना मौसम, प्यार दीवाना,

माहोल ही कुछ बन चला था।


मानो हर तरफ़ था सन्नाटा,

बस इनकी खिलखिलाती हँसी थी,

लोग खिड़की से झाँक रहे थे,

जानने की यह किन दिवानो की टोली थी।


कदम नाचते हुए छत तक पहुच गए,

मानो हाथ आसमान छू जायेंगे,

और बातें, बादलो के पीछे

छिपे तारो को बुलायेंगे।


लड़की ने कदम बढाया, लड़के ने बाहे फैलाई;

मानो कोई सुर का साज़ था,

चंचल नैनो में प्यार का राज़ था

एक दूसरे में खोये, ना माहोल ना भीगे समा का होश था।


यह उस रात की रवानी थी,

बूंदों के छाव में प्यार के एहसास की कहानी थी.

समा मुस्कुरा रहा था,

इन प्रेमियों की अदा पे इतरा रहा था।



4 comments:

Prashant said...

wah wah ustad!!!

Nivi said...

THE poem for THE weather..... :D

kumud said...

To Prashant...

Are huzoor Wah Madhoo boliye :)

To Madhu...

har ek mausam ki har ek kahani...
tum sunathi raho, apni zubaani...
hum to sunte hain aur kho jaate hain...
tumhari gazab ki kavithaye humein banadethi hain deewaani...

Anjali said...

wah wah

Rima, you are deeply loved

                                                  Rima at Infinitea, Bengaluru Dearest Rima, I wish I wasn’t writing this letter to you. B...