खामोशी छाई हुई थी ,
तनहाई का सहारा था ...
अपने ख्वाबों को समेटने का ,
मेरे पास एही एक मौका था।
ना जाने क्यों ऐसा होता हैं,
खामोशी में दिमाग हिचकोले लेटा हैं;
तनहाई कि गहराई में यादें दुबकी लेती हैं.
क्या किया ? क्या पाया ?
हर सवाल का जवाब नहीं होता।
जो सच्चाई पिरोये जिन्दगी ने ,
उस गुत्थी को बस सुलझाना हैं।
शब्दो के भावंदर में कही खो ना जाऊ मैं...
बहुत कुछ कहते हुए भी...कुछ ना कह पाऊँ मैं;
खामोशी छाई हुई थी,
तनहाई का सहारा था...
Saturday, September 22, 2007
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Rima, you are deeply loved
Rima at Infinitea, Bengaluru Dearest Rima, I wish I wasn’t writing this letter to you. B...
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Tale of a tall order Was resisting this trail Toying with my mind Desires run a train Takes flight all of town Time it right Let the heart t...
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Rima at Infinitea, Bengaluru Dearest Rima, I wish I wasn’t writing this letter to you. B...
2 comments:
nice poem
kuch baatien ankahee rehti hain..par unsuni nahi!
maine inhe suna hai..dur hi sahi..bina mile hi sahi..par haan maine suna hai!
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