मिटटी से बने हम, मिटटी में मिल जाते हैं,
झुलसती आग के दामन में,
यह शरीर समा जाता हैं,
रह जाती हैं बस यादें,
वोह मुस्कान, वोह मस्ती,
वोह आंसूं, वोह बच्पना…
* Dedicated to Kanjilal Kaku,
"will always remember you , your smile, your pampering and all the drama practices..."
No comments:
Post a Comment